राजस्थान की कला संस्कृति विविधताओं से भरी हुई है। यहां के लोकगीत एवं लोकनृत्य बहुत प्रसिद्ध है। मेवाड़ में भवाई, शेखावाटी में चंग, गींदड, मारवाड़ में गैर, जालौर में ढोल एवं अलवर-भरतुपर क्षेत्र में रसिया आदि नृत्य किए जाते हैं।
झालावाड़ जिले का 'बिन्दोरी' नृत्य में युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया जाता है। यह नृत्य रात्रि में मशालों की रोशनी में किए जाने वाले 'वीर रस' से ओत-प्रोत होकर पूर्णत: युद्ध कौशल का प्रदर्शन है। इसमें योद्धा अपने दोनों हाथों में करीब ढाई फीट लम्बी डंडियां लेकर सुर-ताल-लय के साथ गोल घेरे में कमर व कंधों को चलाते हुए घूमते हुए नृत्यु करते हुए एक-दूसरे पर वार करते हैं और दूसरे के वार को बचाते हैं।
जमीन पर घुटने के बल झुककर, जमीन पर लेटकर कलाबाजी करते हुए इस नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है।
बिन्दोरी नृत्य में गैर, गींदड और गवरी नृत्यों के समान नर्तकों के हाथों में डंडियां होती हैं किन्तु बिन्दोरी पूर्णतया भिन्न है इसमें सुर-ताल-लय वीर रस से परिपूर्ण होते हैं।
विवाह के समय महिलाओं द्वारा वीर रस के जो गीत गाए जाते हैं उनसे नर्तकों में जोश भर जाता है और वो पूर्णलय से नृत्य करने लगते हैं।
बिन्दोरी नृत्य रियासत काल में युद्ध कौशल कला थी जिसका प्रारंभ युद्ध काल में पुरुष योद्धाओं के मनोरंजन व युद्ध अभ्यास के रूप में हुआ, इसमें नर्तकों द्वारा रंग-बिरंगा अंगरखा, धोती, सिर पर काठियावाड़ी साफा, आंखों में काजल, माथे पर रोली का तिलक व पैरों में घुंघरू बांध नृत्य किया जाता है।