रियासतों को तोपों की सलामी दी जाती थी इसलिए उन्हें 'सेल्यूट स्टेट' कहा जाता था जबकि ठिकानों को तोपों की सलामी नहीं दी जाती थी, इसलिए उन्हें 'नॉन सेल्यूट स्टेट' कहा जाता था।
क्या है सेल्यूट स्टेट और नॉन सेल्यूट स्टेट
ब्रिटिश काल में भारतीय राजाओं को तोपों की सलामी दी जाती थी। वर्ष 1858 ई. में रानी विक्टोरिया ने ऐलान किया था कि भारतीय रियासतों के शासकों को व्यक्तिगत और राजनीतिक तौर पर तोप की सलामी दी जाए।
राजपूताना में 19 रियासतों के शासकों को तोपों की सलामी लेने का अधिकार था। जोकि उनकी हैसियत के अनुसार तोपों की सलामी की संख्या निश्चित थी। इनकी संख्या 9 से लेकर 21 तक थी।
ये तोपें तब दागी जाती थी जब कोई शासक वायसराय से भेंट करने आता था।
रियासतों में शासक या युवराज के जन्मदिन अथवा रियासती दरबार के अवसर पर तोपों की सलामी का रिवाज था।
किस रियासत को मिलती थी सर्वाधिक तोपों की सलामी
राजपूताना में केवल उदयपुर रियासत को 19 तोपों की सलामी दी जाती थी। ये सलामी रियासत से बाहर मिलती थी, जबकि वे अपनी रियासत में 21 तोपों की सलामी ले सकते थे।
17 तोपों की सलामी
कुछ रियासतों के शासकों को 17 तोपों की सलामी दी जाती थी। जिसमें बीकानेर, भरतपुर, बूंदी, जयपुर, जोधपुर, करौली के महाराजा, कोटा के महाराव तथा टोंक के नवाब शामिल थे।
15 तोपों की सलामी
अलवर के महाराजा, बांसवाड़ा के महारावल, धौलपुर के महाराज-राणा, डूंगरपुर के महारावल, जैसलमेर के महारावल, किशनगढ़ के महाराजा, प्रतापगढ़ के महारावल तथा सिरोही के महारावल को 15 तोपों की सलामी दी जाती थी।
झालावाड़ के महाराज को 13 तोपों की सलामी दी जाती थी।