प्रत्येक व्यक्ति एक उपभोक्ता है, चाहे उसका व्यवसाय, आयु, लिंग, समुदाय तथा धार्मिक विचार धारा कोई भी हो। उपभोक्ता अधिकार और कल्याण आज प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अविभाज्य हिस्सा बन गया है और हमने अपनी दैनिक जीवन में इस सभी का कहीं न कहीं उपयोग किया है।प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को
"विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस" मनाया जाता है। यह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी द्वारा की गई एक ऐतिहासिक घोषणा में बताया गया था, जिसमें चार मूलभूत अधिकार बताए गए हैं।
- सुरक्षा का अधिकार
- सूचना पाने का अधिकार
- चुनने का अधिकार
- सुने जाने का अधिकार
इस घोषणा से अंतत: यह तथ्य अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य हुआ कि सभी नागरिक, चाहे उनकी आय या सामाजिक स्थिति कोई भी हो उन्हें उपभोक्ता के रूप में मूलभूत अधिकार हैं। 9 अप्रैल 1985 एक अन्य उल्लेखनीय दिवस है जब संयुक्त राष्ट्र की महा सभा द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के लिए मार्गदर्शी सिद्धांतों का एक सैट अपनाया गया और संयुक्त राष्ट्र के महा सचिव को नीति में बदलाव या कानून द्वारा इन मार्गदर्शी सिद्धांतों को अपनाने के लिए सदस्य देशों से बातचीत करने का अधिकार दिया गया। इन मार्गदर्शी सिद्धांतों ने एक व्यापक नीति रूप रेखा का गठन किया जिसमें निम्नलिखित क्षेत्रों में उपभोक्ता संरक्षण के लिए सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्यो की जरूरत की जानकारी दी गई।
- भौतिक सुरक्षा
- उपभोक्ता के आर्थिक हितों की सुरक्षा और प्रोत्साहन
- उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की सुरक्षा तथा गुणवत्ता के लिए मानक
- राहत पाने के लिए उपभोक्ताओं को सक्षम बनाने हेतु साधन
- विशिष्ट क्षेत्रों (भोजन, पानी और दवाएं) से संबंधित साधन और
- उपभोक्ता शिक्षा और सूचना कार्यक्रम
अब यह सभी जगह स्वीकार कर लिया गया है कि उपभोक्ता को अधिकार है कि उसे शोषण से बचने के लिए सभी संगत जानकारियां प्रदान की जाए और बाजार से उत्पाद या सेवाएं लेते समय उसे पर्याप्त विकल्प प्रदान किए जाएं। ये अधिकार राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय दोनों ही मंचों पर सुपरिभाषित हैं तथा सरकार के समान अनेक अभिकरण और स्वयं सेवी संगठन नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए निरंतर कार्य करते हैं।
भारत में 24 दिसंबर के दिन राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है, जिससे इसी दिन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को लागू किया गया था। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य सहित संयुक्त मार्गदर्शी सिद्धांतों के आधार पर 1986 में लागू किया गया था। इस अधिनियम में मुख्यत: दंडात्मक या निवारणात्मक मार्ग के स्थान पर शोषण और अनुचित रूप से लेनदेन के विभिन्न प्रकारों के खिलाफ उपभोक्ताओं को प्रभावी सुरक्षा प्रदान की जाती है। यह सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है जब तक कि इसे विशेष रूप से छूट न दी जाएं और इसमें तीव्र तथा कर्म खर्चीले न्याय मार्ग के लिए निजी, सार्वजनिक और सहकारी क्षेत्रों को शामिल किया जाता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिकार भारत के संविधान की धारा 14 से 19 बीच अधिकारों से आरंभ होते हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम, जिससे हमारे देश में शासन प्रक्रिया में एक खुलापन आया है और साथ ही इसमें अब उपभोक्ता संरक्षण के लिए दूरगामी निहितार्थ शामिल हैं। अधिनियम के अनुसार 'उपभोक्ता' को निम्नानुसार परिभाषित किया है :
- कोई व्यक्ति जो विचार हेतु सामान हेतु खरीदता हैं और कोई व्यक्ति जो बिक्री करने वाले की अनुमति से इन वस्तुओं का उपयोग करता है।
- कोई व्यक्ति जो विचार हेतु कोई सेवा किराए पर लेता है और इन सेवाओं के कोई लाभार्थी, बशर्तें कि सेवा का लाभ उस व्यक्ति के अनुमोदन से लिया गया है जिसने विचार हेतु सेवाएं किराए पर ली थीं।
इसके अलावा किसी ऐसी वस्तु या सेवा को विचार में लेना जिसके लिए या तो भुगतान किया गया है अथवा इसका वचन दिया गया हैं या आंशिक भुगतान किया गया है अथवा वचन दिया गया है अथवा इसे एक आस्थगित भुगतान की प्रणाली के तहत प्रदान किया गया है।इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के निम्नलिखित अधिकारों के प्रवर्तन और संरक्षण की कल्पना की गई है :
सुरक्षा का अधिकार
इसका अर्थ है वस्तुओं और सेवाओं के विपणन के विरूद्ध सुरक्षा प्रदान करना, जो जीवन और सम्पत्ति के लिए जोखिम पूर्ण है। खरीदी गई वस्तुएं और सेवाएं न केवल तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें बलकि इनसे दीर्घ अवधि हितों की पूर्ति भी होनी चाहिए। खरीदने से पहले उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं की गुणवत्ता पर जोर दिया जाना चाहिए और साथ ही उत्पाद तथा सेवाओं की गारंटी पर बल दिया जाना चाहिए। उन्हें वरीयत: गुणवत्ता चिन्ह वाले उत्पाद खरीदने चाहिए जैसे आईएसआई, एग मार्क आदि।
सूचना पाने का अधिकार
इसका अर्थ है वस्तुओं की मात्रा, गुणवत्ता, शक्ति, शुद्धता, स्तर और मूल्य के बारे में जानकारी पाने का अधिकार है ताकि अनुचित व्यापार प्रथाओं के विरूद्ध उपभोक्ता को सुरक्षा दी जा सके। उपभोक्ता द्वारा एक उत्पाद या सेवा के बारे में सभी जानकारी पाने पर बल दिया जाना चाहिए ताकि वह एक निर्णय या विकल्प के पहले इस पर विचार कर सकें। इससे उसे बुद्धिमानी और जिम्मेदारी से कार्य करने की क्षमता मिलेगी तथा वह उच्च दबाव वाली बिक्री तकनीकों का शिकार बनने से बच सकेगा।
चुनने का अधिकार
इसका अर्थ है आश्वस्त होने का अधिकार, जहाँ भी प्रतिस्पर्धी कीमत पर वस्तुओं और सेवाओं की किस्मों तक पहुंचना संभव हो।जहां किसी का एकाधिकार है, इसका अर्थ है संतोषजनक गुणवत्ता और सेवा का आश्वासन उचित मूल्य पर पाना। इसमें मूलभूत वस्तु और सेवाओं का अधिकार भी शामिल है। इसका कारण है अल्पसंख्यक वर्ग को चुनाव का अबाधित अधिकार देना ताकि वे इसके बड़े हिस्से में बड़े वर्ग को अस्वीकार कर सके। इस अधिकार का उपयोग प्रतिस्पर्धी बाजार में बेहतर रूप से किया जा सकता है, जहां अनेक प्रकार की वस्तुए प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध हैं।
सुने जाने का अधिकार
इसका अर्थ है उपभोक्ताओं के हितों पर उपयुक्त मंचों में पर्याप्त ध्यान दिया जाएगा। इसमें उपभोक्ता कल्याण पर विचार करने हेतु गठित विभिन् मंचों में अधिकारों का प्रतिनिधित्व भी शामिल है। उपभोक्ताओं द्वारा गैर राजनैतिक और गैर वाणिज्यक उपभोक्ता संगठन बनाए जाने चाहिए, जिन्हें सरकार और उपभोक्ताओं से संबंधित अन्य मामलों में निकायों द्वारा गठित विभिन्न समितियों में प्रतिनिधित्व दिया जा सके।
विवाद सुलझाने का अधिकार
इसका अर्थ है अनुचित व्यापार प्रथाओं या उपभोक्ताओं के गलत शोषण के विरूद्ध विवाद सुलझाने का अधिकार। इसमें उपभोक्ता की वास्तविक शिकायतों के उचित निपटान का अधिकार भी शामिल है। उपभोक्ताओ द्वारा अपनी वास्तविक शिकायतों के लिए शिकायत दर्ज कराई जानी चाहिए। कई बार शिकायत बहुत कम कीमत की होती है समाज पर समाज पर कुल मिलाकर इसका गहरा प्रभाव होता है। इसमें उपभोक्ता संगठनों की सहायता से भी अपनी शिकायतों का निपटान किया जा सकता है।
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
- इसका अर्थ है पूरे जीवन उपभोक्ता को सूचति बने रहने का ज्ञान और कुशलता अर्जित करने का अधिकार। उपभोक्ताओं की उपेक्षा, विशेष रूप से ग्रामीण उपभोक्ताओं की, यह उनके शोषण के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है। उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान होना चाहिए तथा इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। केवल तभी वास्तविक उपभोक्ता सुरक्षा सफलता पूर्वक प्राप्त की जाती है।
इस प्रकार उपभोक्ता संरक्षण की चिंता उचित व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित करने के साथ, वस्तुओं की गुणवत्ता और सूचित उपभोक्ता सहित प्रभारी सेवाओं से जुड़ी है जिन्हें अपनी रुचि की वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, बनावट और मूल्य की जानकारी हो। एक ऐसी उपभोक्ता संरक्षण नीति ऐसे परिवेश का सृजन करती है जिसके द्वारा ग्राहक और उपभोक्ता उनके लिए आवश्यक वस्तुओं तथा सेवाओं की आपूर्ति से संतोष प्राप्त करते हैं।