वर्षों पहले मुंशी प्रेम चंद ने अपनी कहानी 'नमक का दरोगा' में बड़ी अच्छी उक्ति लिखी है, जिसे वर्तमान में करीब सारा सरकारी महकमा सही साबित कर रहा है। जो आए दिन भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़ में भी आ रहे हैं।
उन्होंने इस कहानी में लिखा था कि 'मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है।'
कितनी सुविधाएं मिलती सरकारी कर्मचारियों को, पहले की अपेक्षा आज के दौर में
और अब तो राजस्थान सरकार द्वारा अपने सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के कल्याण के लिए तीन हजार करोड़ रुपये का कार्मिक कल्याण कोष के गठन के आदेश जारी कर दिए गए हैं, जल्द ही यह कार्य करने लगेगा।
परंतु क्या कर्मचारी वाकई सामंतशाही मानसिकता से ऊपर उठ पाएंगे, या फिर वहीं आमजन के कामकाज को टलते रहेंगे और रिश्वत मिलने पर तुरंत कर देंगे।
सरकार अपनी दायित्व बखूबी निभा रही है कर्मचारियों के प्रति, परंतु कर्मचारी है कि आज भी वेतन को 'नमक के दारोगा' वाले मुंशी की तरह वेतन को पूर्णिमा का चांद ही मान रहे हैं और हर दिन रंगे हाथों पकड़े जा रहे हैं।
ये तय है राज्य सरकार या केन्द्र सरकार अपने कर्मचारियों का कितना ही भला करें, वे वहीं ढर्रे पर चलेंगे।
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