उत्तर-
- जैविक कृषि उस प्रकार की कृषि को कहते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक या अन्य कृषि रसायनों का उपयोग न किया जाता हो तथा फसल को पुष्ट बनाने और फसल व्यवस्था के लिए वह पूर्णत: जैविक स्रोतों पर निर्भर हो। इस प्रकार की कृषि प्रणाली में मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने तथा कीड़ों और बीमारियों की रोकथाम के लिए जैविक प्रक्रिययाओं और पारिस्थितिकीय संपर्क में तेजी लायी जाती है।
- जैव कृषि का प्रमुख कार्य है पोषकों के पुनर्उपयोग एवं नुकसान में कमी द्वारा मिट्टी की उर्वरता बनाये रखना।
- फसल के पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा करने के साथ-साथ जैव कृषि का अतिरिक्त लाभ है कि यह मिट्टी के भौतिक गुणधर्म, सूक्ष्मजीवी उत्पादन और खाद के अंश को बढ़ाने के साथ-साथ उसकी जलधारण क्षमता में भी वृद्धि करती है।
- जैव कृषि में मात्र खेतों की खाद शामिल नहीं है, जिसे प्राचीनकाल में पौधों के पौष्टिक तत्व के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है, बल्कि इसमें कृषि खाद, हरी खाद और जैव उर्वरक खादों का प्रयोग भी शामिल है। खेतों की खाद में गोबर, फसलों के अपशिष्ट, खाद्य कचरा आदि आते हैं।
- शहरी और ग्रामीण कचरे से बनी खाद भी पौधों को पोषक तत्व प्रदान करती है। कृमि खाद प्रक्रिया के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों में केंचुए पाले जाते हैं और इन केंचुओं के मल को खाद के रूप में काम में लाया जाता है, जिसमें एन.पी.के. तत्व शामिल होते हैं।
- हरित खाद में सेसबानिया की विभिन्न प्रजातियों जैसी तेजी से उगनेवाली फलीदार फसलों की खेती और वापस इन्हें उर्वरक के रूप में मिट्टी में जोत देने की प्रक्रिया शामिल होती है।
- यह प्रक्रिया भी मिट्टी में सूक्ष्मजीवी क्रिया को बढ़ावा देती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया और पैदावार में बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार जैविक खादों के प्रयोग से ऐसी मिट्टी बन सकती हे, जिसके प्राकृतिक एवं सूक्ष्मजैविक गुण बढ़िया किस्म के हों। खनिज उर्वरकों से मिट्टी के पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ेगी तथा दोनों के मिले-जुले उपयोग से उसके प्राकृतिक एवं सूक्ष्म जैविक गुणों में बढ़ोतरी होगी, जिनके परिणामस्वरूप इन पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ेगी और फसली मिट्टी अच्छी बनेगी।