कहते हैं बिजनेसमैन जोखिम उठाता है, सबको दिखता है, परंतु बौद्धिक वर्ग यह भूल रहा है एक शासक भी जोखिम उठाता था। शत्रु सेना से संघर्ष के खिलाफ, अपनी प्रजा को बचाने का दायित्व उसका होता था। इतिहास साक्षी विदेशी आक्रांताओं ने भारत के वैभव को लूट लिया।
जोखिम था, परंतु बिजनेस नहीं
राजतंत्र में बहुत जोखिम था, परंतु वह अलग विचारधारा वालों को नहीं दिखता। हां लोकतंत्र में भी जोखिम है जिसे आज के कद्दवर नेता उठा रहे हैं। सुख भी भोग रहे हैं, घोटालों और भ्रष्टाचार से घर भर रहे हैं। बिजनेसमैन भी जोखिम उठा रहे हैं, पैसों के एवरेस्ट पर हर साल कोई न कोई विराजमान रहता है। रहे क्यों नहीं? आज पैसों को बोलबाला है।
पैसा वहीं जिसे एक मानव निर्मित मशीन बनाती है, और उसकी मादक खनक में हर कोई बावला हो रहा है। किसीको संतोष नहीं है दाल-रोटी में।
हो भी कैसे, हर कोई चाहता है फोर्ब्स या टाइम मैगजीन की सूची में अपना नाम दर्ज करवाना। इनमें नाम आ जाए फिर आप दुनिया के टॉप बिजनेसमैन हो, फिर चाहे आपका सबसे नीचे के तबके का कर्मचारी भले ही पेट काट कर अपना जीवनयापन करता हो।
कोई फर्क नहीं पड़ता था राजा को, कि उसकी प्रजा का सबसे निचला कर्मचारी की तनख्वाह क्या थी, क्यों उनसे बेगार ली जाती थी। राजा को होश नहीं था, कुछेक अच्छे राजा भी हुए हैं लेकिन वो आदर्श नहीं बन सके।
हां, आज का मीडिया बिजनेसमैन की तारीफ करते नहीं थकते हैं, आपने भी पढ़ा होगा फलां बिजनेसमैन प्रति घंटे करोड़ों रुपए कमाते हैं, बड़ी अजीब बात है वह अकेला थोड़े कमा सकता है इतनी बड़ी राशि। तब मीडिया भूल जाता है कि इस प्रति घंटे रिकॉर्ड कमाई के पीछे कितने लोगों का योगदान है। जो उस आमजन के हाथों से पैसा निकलवाता है जिसके पास सिर्फ कर्ज है।
हमारी बात हर किसको तो समझ नहीं आएगी, परंतु जो इसे धैर्य से पढ़ेगा, साथ ही वह मजबूरी का मारा होगा जरूर समझ आएगी।
राजा भी बड़ा जोखिम लेता था, युद्ध के समय सबसे पहले सैनिकों के साथ वे ही बलिदान होते थे या कोई कायर शासक होता तो युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ा होता था या यदि दुश्मन सेना विजेता बन जाती थी तो वह आमजन को लूटती थी।
राजा-बिजनेसमैन के मेहनताने पर बंदिशें लगाने वाला कोई नहीं
जो काम आज का बड़ा बिजनेसमैन करता है, वहीं काम पहले एक राजा भी करता था। दोनों में एक समानता बड़ी है वह है, जिस प्रकार राजा या शासक के मेहनताने पर किसी की बंदिशें नहीं थी, उसी प्रकार बिजनेसमैन के मेहनताने पर कोई बंदिशें नहीं है।
आज के बौद्धिक वर्ग का यह तर्क भले ही सही हो सकता है कि बिजनेसमैन ने अपना साम्राज्य खड़ा करने के लिए बहुत जोखिम उठाया है, तो उस जमाने के बौद्धिक वर्ग के अनुसार एक शासक भी बहुत जोखिम उठाता था। इसके लिए ही शासक प्रजा से मनमाना धन वसूलते थे, शासक अपने चाहने वालों यानी जो उसकी साम्राज्य को मजबूती प्रदान करते थे उन्हें प्रशासन में बड़े पद, सामंत आदि बना देते थे। वह उसके राज करने या बिजनेस का फण्डा था, उनकी आमदनी वे खुद तय करते थे। अच्छा राजा होता था तो प्रजा को कोई कष्ट नहीं होता था उनसे लाग-बाग उतनी ही वसूली जाती थी जितना
आज का बिजनेसमैन भी वही कर रहा है, उसके बिजनेस को बढ़ाने वाले प्रोफोशनल लोगों को अच्छी तनख्वाह होती है, फिर भले ही फील्ड वर्क वाला टारगेट पूरा करते दर-दर भटके।
इस आलोचनात्मक लेख को लिखने में मेरा कोई स्वार्थ नहीं है न राजतंत्र का पक्ष लेना है। मैं तो लोगों को यह बताना चाहता हूं कि जोखिम हर कार्य में होता है। आज के समय में एक औरत का घर से बाहर निकलना भी बेहद जोखिम भर है।
इस लेख के जरिए मैं यह बताना चाहता हूं कि किसी भी संस्था, विचारधारा, शासन और सम्प्रदाय के पीछे उन लोगों का भी बड़ा हाथ होता है जो उस व्यक्ति के साथ कंधे से कंधा मिलकर चल रहे हैं जो उनसे उम्मीद करता है कि वे उसका साथ दे, उसकी भावना रूपी विचारों को मानें, उसके अनुरूप चले। तब जाकर ही कोई बिजनेस, साम्राज्य, विचारधारा और शासन मजबूती से खड़ा हो पाता है।
हम मानव है, और मानव में एक—दूसरे के प्रति किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए, लेकिन हर शासन व्यवस्था में भेदभाव होता है, होता रहेगा।
हम मानव हैं इसलिए भेदभाव करते हैं, इससे ही धर्म, जाति, धर्म गुरुओं के पद, हाईप्रोफाइल लाइफ, सेलिब्रिटी, VIP, निम्न जाति, उच्च जाति, फर्स्ट क्लास, सेकंड क्लास और भी बहुत वर्ग बन जाते हैं।