नेताजी हैं कैसे मोह त्याग दें सत्ता
का, खुद ने क्षेत्रीय पार्टी खड़ी की
है बड़ी मेहनत से।
इस विरासत का उपभोग यदि संतान न करें, ऐसा नेताजी को मंजूर नहीं।।
तभी तो उत्तर प्रदेश (यूपी), बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं दक्षिण भारत में कई क्षेत्रीय पार्टियां अपना वजूद आज भी बनाए
हुए हैं। जिनमें ज्यादातर आपराधिक प्रवृति, बाहुबली एवं बार—बार अपनी छवि का फायदा उठाने वाले होते हैं। जिससे जनता का विकास कम
चापलूसों का ज्यादा होता है।
दूसरी बात यह है कि ये पार्टियां किसी दूसरे योग्य व्यक्ति को ना तो पार्टी अध्यक्ष बनाती है और ना ही कोई राज्य का प्रमुख।
बनाए भी तो कैसे?
अपने ही परिवार के सदस्यों में बगावत हो जाए, और नेताजी को रोटी भी नसीब न हो।
यही भय है, बस बातें लोकतंत्र या समाजवाद की करते हैं।
विधानसभा में पार्टी बहुमत से जीते तो नेताजी के परिवार के किसी सदस्य का राजतिलक जरूर
एक अन्य बात यह है ये राज्य के
मुख्यमंत्री खुद बनते हैं, विधानसभा में पार्टी
बहुमत से जीते तो अच्छा है, नहीं तो लोकसभा में हाथ—पैर मारते हैं, उन्हें पार्टी के अन्य योग्य
उम्मीदवारों से कोई मतलब नहीं होता है। फिर ये पार्टी के प्रति अपनी वफादारी एवं
खुद को योग्य जन प्रतिनिधि साबित करते लोकसभा में नजर आते हैं।
अच्छा है, लोकतंत्र है, नहीं तो ये अपनी
आकौत पर आने में कतई देर न लगाते। सभी पदों पर खुद काबिज हो जाते। वैसे भी कई लोग
अपने परिवार के सदस्यों को खेल बोर्ड के अध्यक्ष एवं अन्य बड़े पदों पर काबिज करते
हैं। इसके उदाहरण हमारे गृह मंत्री भी हैं, साथ में कई
प्रदेशों के बड़े नेता भी।
समाजवादी पार्टी अभी तक परिवारवाद से बाहर नहीं निकली
कभी नहीं लगता सपा एक लोकतांत्रिक
पार्टी है ऐसा लगता है यह राजतंत्र को पाल रही है, केवल दिखावा है कि वह जनहितैषी पार्टी है, सदस्यों
के लिए बेहतर मौका प्रदान करती है।
सपा क्षेत्रीय पार्टी बन कर रह गई है
कारण साफ है क्योंकि इसका अध्यक्ष अभी तक संस्थापक परिवार से सदस्य के अलावा कोई
अन्य सदस्य नहीं बना है।
4 अक्टूबर, 1992 में इस पार्टी की स्थापना मुलासिंह यादव ने की थी तभी से इस पार्टी पर
परिवार के बाहर का अध्यक्ष नहीं चुना गया है। जिसके कारण अभी तक यह पार्टी उत्तर
प्रदेश से बाहर अपना ज्यादा प्रभाव बिखेर नहीं पाई है।
इससे तो यह साफ जाहिर होता है कि इस
परिवार के अलावा इस पार्टी में कोई योग्य सदस्य है ही नहीं।
तभी तो कोई योग्य सदस्य पार्टी का
अध्यक्ष या विधानसभा में मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं बना।
वे केवल दर्शक मात्र बनकर या फिर अपने
हित साधक पीछे लग्गू बनकर रह जाते हैं और नेताजी की हां में हां मिलाते रहते हैं।
राष्ट्रीय जनता दल अयोग्य को भी योग्य पर थोपने वाली पार्टी
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) देश की एक
प्रमुख राजनीतिक दल जरूर है, लेकिन यह भी अपनी
संकुचित विचारधारा के कारण राज्य से बाहर बड़ा प्रभाव नहीं दिखा पाई है। इसकी
स्थापना 5 जुलाई, 1997 को की गई। इस दल
के संस्थापक एवं अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव हैं।
यहां भी बड़ी विचित्र बात है, परिवार के बाहर कोई योग्य सदस्य ही नहीं मिल रहा है।
तभी तो खुद मुख्यमंत्री रह लिए, फिर जनता को अनपढ़ पत्नी के
हवाले कर दिया, लेकिन यह सच है नीति निर्माता आईएएस होते
हैं।
अब कमान बेटे के हाथों में है, जो खुद को युवाओं को सृजन हार तो बता रहे हैं लेकिन
योग्य युवाओं को पार्टी की कमान देने में वो भी हिचकिचा रहे हैं। पता है खुद की
योग्यता क्या है, कहीं पिता की विरासत किसी दूसरे के हाथों
में सौंप दे तो पिता कहीं नक्कारा, निकम्मा न कह दे।
देश की दो राजनीतिक पार्टियां— भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी, दोनों काफी हद
तक राष्ट्रीय पार्टियां हैं किंतु दोनों ही अपने ध्येय से भटक कर लोगों को गुमराह
कर अपनी विरासत के दंभ पर स्वार्थी लोगों का हित साध रही है। हालांकि से वाकई
राष्ट्रीय पार्टियां हैं।
जब भी जिस पार्टी की सत्ता केन्द्र में रही है विपक्ष ने अपनी सही
जिम्मेदारी कभी नहीं निभाई है। तभी तो आज इतना विरोधाभास नजर आ रहा है।
खैर जो भी हो, ये इनके आपसी
मसला है। पार्टी हित बड़ा होता है लेकिन इन क्षेत्रीय पार्टियों में केवल परिवार
का वर्चस्व बड़ा है।
चलो, जो भी है जनता का हित पूरा होना चाहिए।
ऐसे ही देश की कई पार्टियां संकुचित
विचारधारा लेकर लोकतंत्र की दुहाई देती है, किंतु परिवारवाद से बाहर ही नहीं निकल पाती है। उत्तर प्रदेश में ही बहुजन
समाजवादी पार्टी, उड़ीसा में बीजू जनता दल, दक्षिण भारत की कई क्षेत्रीय पार्टियां इस तरह की संकुचित विचारधाराओं से
बाहर ही नहीं निकल पाई है। जो पिता या किसी अन्य द्वारा दी गई विरासत को अब पार्टी
के किसी योग्य व्यक्ति को देने में हिचकिचा रहे हैं।
खैर, लघु संसद के सच में वही लिखा है जो जनता के बीच इस तरह के प्रश्न उठते हैं
लेकिन वो उन पार्टियों तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसलिए हमने इस मंच से इसे उन तक
पहुंचाने का प्रयत्न किया है। ताकि खुद में बदलाव लाएं और जनता को अधिक से अधिक
लाभ मिल सके।
चलो,
अब से केवल लोकतंत्र की बातें नहीं, बल्कि सिद्धांतों को जीवन में अपनाएं।
देश की पार्टियों का मन शुद्ध करें, ताकि योग्य जन के हाथों में सत्ता हो।
चलो, लोकतंत्र का पर्व मनाएं,
अपने क्षेत्र के गरीब व योग्य उम्मीदवार (शैक्षिक एवं स्वच्छ छवि) को वोट दें।
अलग पार्टी बनाने की अपेक्षा
प्रतिनिधियों की योग्यता संसद द्वारा तय करने में की मांग की जानी चाहिए, ताकि आपराधिक चेहरा, कम पढ़ा
लिखा एवं संकीर्ण विचारधारा वाले लोग दूर रहे।
जय हिंद।