कितने उदाहरण मिलते हैं नेकी की राह पर चलने वालों के,
फिर भी बहुत कुछ गलत है जमाने में।
शायद, वो अपने प्रोफेशन को जिंदा रखने के लिए उच्च दाम वसूलते हैं जमाने से,
और शारीरिक श्रम करने वालों को केवल पेट पालने का मेहनताना मिलता है जमाने से।।
यही तो वो फासला था
जिसे बौद्धिक वर्ग ने बेगार और शोषित कहा।
पर अफसोस,
कि यह कारवां अब भी जारी है।
फ़र्क इतना है आज बौद्धिक वर्ग के मुकाबले मेहनताना कम मिलता है।
वो चले गए,
हां, राजतंत्र को मिटे जमाने हो गए,
पर क्या बदला है आज के जमाने में,
वही, शारीरिक श्रम वालों की बेकद्री है आज के जमाने में।।
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