शेष शव रहता है,
जीवात्मा के चले जाने के बाद।
चाहे वह किसी धर्म का नर हो या नारी या कोई जीवधारी।
तुम धर्मज्ञ हो
सुलझा न सके
पर उलझा अवश्य दिया जनमानस को।
आज अंतर्मन में प्रश्न उठा है
धर्म, क्या है?
वह जिसे कृष्ण ने गीता में कहा
या आज जो धर्म के नाम पर हो रही साम्प्रदायिकता।
कृष्ण ने धर्म जिसे कहा
तब तो कोई अन्य धर्म नहीं था।
रण क्षेत्र में केवल निजजन थे,
तब धर्म-अधर्म का उपदेश दिया
किस संदर्भ में था।
केवल अन्याय के खिलाफ, न्याय का उपदेश था।
हक का प्रश्न था,
अधिकार से वंचितों को।
कौन, यहां अजर-अमर रह पाया है अब तक
धर्म-अधर्म का, क्या भेद पाया है अब तक
संपत्ति के प्रश्न पर,
एक धर्म वाले भी बंट जाते है।
आज, हम नर-नर का खून बहा रहे हैं
बस, दो महत्वाकांक्षियों की महत्वाकांक्षा को तृप्ति के वास्ते।
हम सब मोहरें हैं इन महत्वाकांक्षियों के,
खेलने वाले खेलते आए हैं सदियों से
कोई राजा बना
तो कोई धर्माधिकारी
बाकी तो रंक रह गए
आज भी खेल रहे हैं
निर्दोष के शव पर।