वर्तमान में भारत को प्रति वर्ष 2900 करोड़ लीटर पेट्रोल और 9000 करोड़ लीटर डीजल की जरूरत होती है, जो कि दुनिया में 6वां सबसे ज्यादा तेल उपभोक्ता देश है. उम्मीद है कि 2030 तक यह खपत दोगुनी हो जाएगी और भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश बन जाएगा. कच्चे तेल के कारण हमारा आयात बिल करीब 6 लाख करोड़ रुपये है
इसके अलावा भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जक देश है. दिल्ली जैसे शहरों में लगभग 30% प्रदूषण ऑटोमोबाइल से होता है और सड़क पर कारों और अन्य वाहनों की बढती संख्या प्रदूषण की इस स्थिति को आने वाले दिनों में और भी विकट बनाएगी. ध्यान रहे कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में सालाना 4,00,000 मौतें होती हैं.
इसलिए बढ़ते आयात बिल और प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए भारत का नीति आयोग देश की इकॉनमी को मेथनॉल इकॉनमी में बदलने पर विचार कर रहा है. इसके लिए नीति आयोग ने 5000 करोड़ रुपये की सहायता से "मेथेनॉल इकॉनमी फण्ड" का गठन किया है ताकि 1 जनवरी 2018 से मेथेनॉल का उत्पादन देश में शुरू किया जा सके.
मेथनॉल अर्थव्यवस्था क्या है?
वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य ड्राईवर डीजल और पेट्रोल हैं अर्थात भारत की अधिकतम ऊर्जा जरूरतें डीजल और पेट्रोल के प्रयोग से पूरी होतीं हैं लेकिन अब इस ट्रेंड को बदलने की दिशा में काम हो रहा है.
“मेथनॉल अर्थव्यवस्था” का शब्दिक अर्थ ऐसी अर्थव्यवस्था से है जो कि डीजल और पेट्रोल पर आधारित होने के बजाय मेथनॉल के बढ़ते प्रयोग पर आधारित हो. प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक देश के आयात बिल को 10% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
लोकसभा में मेथनॉल पर बयान देते हुए केन्द्रीय मंत्री गडकरी ने कहा कि नीति आयोग ने 'मेथनॉल अर्थव्यवस्था' के अंतिम रोडमैप में साल 2030 तक कच्चे तेल के आयात में सालाना 100 अरब डॉलर की कमी का लक्ष्य रखा है.
मेथनॉल से अर्थव्यवस्था को क्या फायदे होंगे?
सरकार का भारत को मेथनॉल अर्थव्यवस्था बनाने के पीछे मुख्य उद्येश्य देश की अर्थव्यवस्था के विकास को सस्टेनेबल या टिकाऊ बनाना है ताकि ‘वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं से समझौता किये बिना भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा किया जा सके’.
मेथनॉल के उपयोग से अर्थव्यवस्था को निम्न फायदे होंगे;
1. नीति आयोग के आकलन के अनुसार मेथनॉल को अपनाने से भारत का अपना स्वदेशी ईंधन मौजूदा उपलब्ध ईंधन के मुकाबले लगभग 24 रुपए लीटर प्रति लीटर अर्थात कम से कम 30% सस्ता हो सकता है.
2. मेथनॉल के इस्तेमाल से अगले 5 से 7 सालों में कम से कम 20% डीजल की खपत को कम किया जा सकता है जिससे कि हर साल रु. 26, 000 करोड़ की बचत होगी.
3. वर्ष 2030 तक मेथनॉल भारत के कच्चे तेल के 10% आयात का स्थान ले सकता है, इससे कच्चे तेल के बिल में करीब 30% की कटौती होगी.
4. इसके अलावा गैसोलीन के साथ मेथनॉल मिश्रण कार्यक्रम के द्वारा भी अगले 3 सालों में ईंधन बिल में कम से कम 5000 करोड़ रुपये वार्षिक की बचत होगी. इतना ही नहीं सरकार मेथनॉल को एलपीजी गैस में मिलाने पर विचार कर रही है जिससे भी हर साल Rs. 6000 की बचत की उम्मीद है. ज्ञातव्य है कि असम में मेथनोल का इस्तेमाल कुकिंग गैस में रूप में इस्तेमाल होने की कोशिश हो रही है.
5. यदि मेथनॉल आधारित वाहनों का चलन बढ़ता है तो इससे देश में इस सेक्टर से जुडी इंजीनियरिंग नौकरियों और मेथनॉल आधारित उद्योगों (एफडीआई और भारतीय) में निवेश को और बढ़ावा मिलेगा.
6. नीति आयोग द्वारा 'मेथनॉल इकोनॉमी' के लिए अंतिम ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है जिसका लक्ष्य भारत के कच्चे तेल के आयात में 2030 तक 100 बिलियन डॉलर की वार्षिक कटौती करना है.
7. भारत का लक्ष्य 2021 तक कम से कम 5 मिलियन टन मेथनॉल उत्पादन करने का होगा. सार्जनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ जैसे भेल, कोल् इंडिया लिमिटेड और सेल मेथनॉल का उत्पादन करने पर विचार कर रहे हैं. त्रिची में भेल, ताल्चर उर्वरक संयंत्र भी कम समय में बड़ी मात्रा में मेथनॉल का उत्पादन करने के क्षमता रखते हैं.
मेथनॉल और पर्यावरण सुरक्षा
मेथनॉल ईंधन के परिणामस्वरूप पर्यावरणीय लाभ भी होंगे और यह शहरी प्रदूषण के ज्वलंत मुद्दे को हल कर सकता है. मेथनॉल ईंधन का एक साफ सुथरा स्रोत है जिसको परिवहन में इस्तेमाल होने वाले डीजल, पेट्रोल और एलपीजी और कुकिंग में इस्तेमाल होने वाले ईंधनों जैसे लकड़ी, मिटटी का तेल और एलपीजी के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है.
इसके अलावा मेथनॉल को रेलवे के डीजल इंजन, समुद्री क्षेत्र, जेनरेटर सेट और बिजली बनाने वाले संयंत्रों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से "हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था" बनाने के दिशा में मेथनॉल इकोनॉमी एक पुल की तरह काम करेगी.
मेथनॉल सभी आंतरिक दहन इंजनों में कुशलता से जलता है, जिसके जलने से कोई भी PM कण, काली कालिख , नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड का लगभग नहीं के बराबर उत्सर्जन करता है.
मेथनॉल का गैसीय संस्करण - डीएमई; एलपीजी के साथ मिश्रित हो सकता है जो कि बड़ी बसों और ट्रकों में डीजल के उत्कृष्ट विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
यदि मेथनॉल 15 (एम 15) को पेट्रोल में मिलाया जाए तो यह प्रदूषण में 33% की कमी करेगा और यदि डीजल को मेथनॉल द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है तो प्रदूषण में 80% से अधिक की कमी होगी.
नीति आयोग के मुताबिक वाहनों में 10% मेथेनॉल का इस्तेमाल शुरू हो गया तो इससे से देश में प्रदूषण को 40 फीसदी तक कम किया जा सकता है.
भारतीय रेलवे में मेथनॉल का इस्तेमाल;
आयोग का कहना है कि अकेले भारतीय रेलवे हर साल 3 अरब लीटर डीजल खर्च करता है. इस खर्च को कम करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से 6 हजार डीजल इंजनों को 100 फीसदी मेथेनॉल के इस्तेमाल के लायक बनाने की योजना को शुरू किया गया है जिसमें हर इंजन को बदलने की लागत केवल 1 करोड़ रुपये आएगी. इस पहल की मदद से भारतीय रेलवे के डीजल बिल में लगभग 50% की कमी आयगी.
नीति आयोग के कहा है कि हमारे देश में भी परिवहन क्षेत्र में 15 फीसदी मेथेनॉल के सम्मिश्रण को लेकर फील्ड ट्रायल चल रहे हैं. जल्दी ही इस दिशा में जरूरी परिवर्तन किये जायेंगे.
"मेथनॉल इकोनॉमी और विश्व
"मेथनॉल इकोनॉमी" की अवधारणा को सक्रिय रूप से चीन, इटली, स्वीडन, इज़राइल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और कई अन्य यूरोपीय देशों द्वारा लागू किया गया है.
वर्तमान में चीन में लगभग 9% परिवहन ईंधन के रूप में मेथनॉल का इस्तेमाल किया जा रहा है. चीन ने लाखों वाहनों को मेथनॉल से चलने के लायक बनाया है.
बताते चलें कि चीन अकेले 65% विश्व मेथनॉल का उत्पादन करता है और यह मेथनॉल का उत्पादन करने के लिए कोयले का उपयोग करता है. इसके अलावा इज़राइल, इटली ने पेट्रोल के साथ मेथनॉल के 15% मिश्रण की योजना बनायीं है.
सारांश के तौर यह कहा जा सकता है कि देश में बढ़ते प्रदूषण और कच्चे तेल के बढ़ते आयात बिल को देखते हुए भारत में मेथेनॉल का उपयोग ना सिर्फ जरूरी है बल्कि यह समय की मांग भी है.
यदि मेथेनॉल का उपयोग भारत में व्यापक पैमाने पर शुरू कर दिया जाता है तो भारत में होने वाला विकास संवहनीय विकास (sustainable development) कहा जायेगा.