सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम का प्रतिपादन 1854 में गोसन ने किया इसलिए जेवन्स द्वारा इस नियम को गोसन का प्रथम नियम कहते हैं। इस नियम की विस्तृत व्याख्या मार्शल ने की।
नियम का अर्थ एवं परिभाषा
- सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम एक सार्वभौमिक (universal) नियम है।
- यह नियम उपभोक्ता के उस व्यवहार पर आधारित है जिसमें उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की ज्यादा से ज्यादा इकाई उपभोग करने पर अतिरिक्त उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की इकाइयों की सीमान्त उपयोगिता उत्तरोतर घटती (गिरती) जाती है।
- मार्शल के अनुसार ‘‘एक वस्तु के स्टॉक में वृद्धि होने से व्यक्ति को जो अतिरिक्त संतुष्टि प्राप्त होती है वह भण्डार में हुई प्रत्येक वृद्धि से कम होती जाती है।’’
- उपभोक्ता किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए करता है तो अतिरिक्त इकाइयां उसके लिए कम उपयोगी होने लगती है। अगर यह क्रिया कुछ समय तक चलती रहती है, तो एक स्थिति वह आती है जब उपभोक्ता को उस वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करने से कुछ भी संतोष नहीं पाता है।
- अगर उपभोक्ता इस स्थिति के बाद भी इस वस्तु का उपभोग जारी किए रखता है तो इस वस्तु से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है।
- अर्थशास्त्री इस प्रवृत्ति को सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम Law of diminishing marginal utility द्वारा अभिव्यक्त करते हैं।
नियम की मान्यताएं (Assumptions of law)
- उपभोक्ता का व्यवहार विवेकशील (Rational) माना जाता है। उपभोक्ता आर्थिक व्यक्ति होता है।उपयोगिता मापनीय है और इसके लिए मुद्रा का उपयोग किया जाता है।
- मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता को स्थिर माना जाता है। उपभोग की गई वस्तु की इकाइयां उचित आकार एवं गुणों की दृष्टि से समरूप होनी चाहिए।
- उपभोग की प्रक्रिया सतत Continuously होती है।
- उपभोक्ता की आय, आदतें रुचि तथा फैशन में दिए हुए समय में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
नियम के लागू होने के कारण
प्रो. बोल्डिंग के अनुसार यह नियम दो कारणों से लागू होता है:-
- विभिन्न वस्तुएं एक—दूसरे की अपूर्ण स्थानापन्न है। इसलिए एक वस्तु के उपभोग को बढ़ाने से सीमान्त उपयोगिता घटने लगती है।
- विशिष्ट आवश्यकताओं की तृप्ति हो सकती है (All wants are satiable) हम किसी भी वस्तु का उपभोग कितना भी बढ़ाएं एक स्तर के बाद उसका उपभोग और नहीं बढ़ाया जा सकता जैसे एक बिन्दु के बाद नमक का उपभोग बंद करना होता है।
नियम का महत्व
- उपयोगिता ह्रास नियम द्वारा मांग का नियम, सम-सीमान्त उपयोगिता नियम आदि नियमों की व्युत्पत्ति होती है। इस नियम का उपयोग सार्वजनिक वित्त में किया जाता है।
- हम जानते हैं कि धनवान के लिए मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता कम और गरीब के लिए यह अधिक होती है। अतः अमीरों पर कर लगाकर उस राशि को गरीबों पर खर्च करने से सामाजिक कल्याण बढ़ाता है।
- इस नियम की सहायता से हीरा-पानी विरोधाभास की व्याख्या की गई है।
- इसके अनुसार पानी जो जीवन के लिए अत्यावश्यक है वह काफी सस्ता होता है जबकि हीरा जोकि जीवन के लिए आवश्यक नहीं है काफी महंगा होता है।
हीरा-पानी विरोधाभास
- इस विरोधाभास को समझने के लिए पानी जो जीवन के लिए आवश्यक है उसकी कुल उपयोगिता (TU) हीरों से प्राप्त कुल उपयोगिता से ज्यादा होती है जबकि किसी वस्तु के लिए दी जाने वाली कीमत उस वस्तु से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता (MU) पर निर्भर करती है न कि कुल उपयोगिता (TU) पर।
- चूंकि हम पानी का बहुतायत में प्रयोग करते हैं। अतः पानी की अन्तिम इकाई से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता (MU) बहुत ही कम होती है। अतः पानी की इस अन्तिम इकाई के उपभोग के लिए हम बहुत कम कीमत देने को उद्यत रहते हैं। चूंकि पानी की सब इकाइयां एक जैसी होती है अतः पानी की दूसरी अन्य इकाइयों के लिए भी हम कम कीमत चुकाते हैं जबकि हीरा अल्प मात्रा में पाया जाता है।
- अतः हीरे की अन्तिम इकाई से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता बहुत अधिक होती है। अतः हम इस हीरे की अन्तिम इकाई के लिए अधिक कीमत अदा करते हैं।
हीरों का दाम जल से अधिक होता है क्योंकि-
1. वे कुछ चुनी हुई फर्मों द्वारा बेचे जाते हैं जिनका एकाधिपत्य होता है।
2. क्रेताओं के लिए उनकी सीमांत उपयोगिता जल से अधिक होती है।
3. क्रेताओं के लिए उनकी कुल उपयोगिता जल से अधिक होती है।
4. उपभोक्ता उन्हें कम दामों पर नहीं खरीदते।
उत्तर— 2
- पानी के उपभोग से प्राप्त कुल उपयोगिता हीरों के उपभोग से प्राप्त कुल उपभोगिता से अधिक होती है, परंतु पानी की कीमत हीरों की कीमत से बहुत कम होती है। इसी स्थिति को मूल्य का विरोधाभास अथवा हीरा—पानी विरोधाभास कहा जाता है।
- एडम स्मिथ ने ही इस विरोधाभास को विकसित किया था। इस विरोधाभास की व्याख्या ज्वेन्स द्वारा की गई। उनके अनुसार किसी वस्तु की कीमत, कुल उपयोगिता के स्थान पर, सीमांत उपयोगिता द्वारा निर्धारित होती है।
- इस संदर्भ में हीरों से प्राप्त होने वाली कुल उपयोगिता बेशक कम होती है क्योंकि उपभोक्ता सापेक्षतया इन्हें कम खरीदते हैं फिर भी हीरों की सीमांत उपयोगिता ऊंची व धनात्मक रहती है। इसी कारण हीरों की कीमत बहुत अधिक होती है।