भारत में औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था एवं प्रभाव
- महादेव गोविन्द रानाडे के अनुसार ‘‘राष्ट्रीय पूंजी का एक-तिहाई हिस्सा किसी-न-किसी रूप में ब्रिटिश शासन द्वारा भारत के बाहर ले जाया जाता है।’
- भारत पर ब्रिटेन के आर्थिक नियन्त्रण का सबसे पहला परिणाम यह हुआ कि परम्परागत भारतीय हस्तशिल्प उद्योग समाप्त होते चले गये। भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में इस प्रक्रिया को ‘अनौद्योगीकरण’ के रूप में जाना जाता है। 1800-1850
- फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार ‘यह भारत एक अथाह गड्ढ़ा है, जिसमें संसार का अधिकांश सोना और चांदी चारों तरफ से अनेक रास्तों से आकर जमा होता है... यह मिस्र से भी अधिक धनी देश हैं।’
धन का बहिर्गमन/सम्पत्ति का अपवाह Drain Of Wealth
- ब्रिटेन द्वारा भारत के कच्चे माल, संसाधनों और धन की निरन्तर लूट को दादाभाई नौरोजी, एम.जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से ‘धन के बहिर्गमन’ के सिद्धांत को प्रतिपादित किया।
- बहिर्गमन की राष्ट्रवादी परिभाषा का तात्पर्य भारत से धन-सम्पत्ति एवं माल का इंग्लैण्ड में हस्तान्तरण था, जिसके बदले में भारत को इसके समतुल्य कोई भी आर्थिक, वाणिज्यिक या भौतिक प्रतिलाभ प्राप्त नहीं होता था।
- धन के बहिर्गमन का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत ब्रिटिश प्रशासनिक सैनिक और रेलवे अधिकारियों के वेतन, आय और बचत के एक भाग के भेजा जाना और भारत सरकार द्वारा अंग्रेज अधिकारियों की पेंशन तथा अवकाश भत्तों को इंग्लैण्ड में भुगतान करना था।
- धन का बहिर्गमन समस्त बुराइयों की जड़ था और यह भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण है, क्योंकि अंग्रेजों से पहले जितने भी शासक भारत में रहे, कितनी ही लूटमार की, फिर भी देश का धन देश में ही रहा, किन्तु भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के साथ ही देश का धन बाहर जाने लगा।
धन-निष्कासन के परिणाम
- भारत से अबाध रूप से धन के निष्कासन का प्रभाव भारतीय कृषि, उद्योग, व्यापार और सर्वाधिक वेतनभेगी भारतीयों पर पड़ा।
- धन-निष्कासन का प्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ कि भारतीयों पर करों का बोझ अत्यधिक बढ़ गया। भारत का यह कर प्रति व्यक्ति आय का 14 प्रतिशत से अधिक था। इससे भारतीयों पर ऋण का बोझ बढ़ता गया और उनका जीवन-स्तर निरन्तर गिरता गया।
- धन-निष्कासन से देश में निर्धनता बढ़ गई, जिससे देश में बार-बार अकाल पड़ने लगे और इससे 2 करोड़ 85 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
- अंग्रेजों द्वारा अधिक धन-निष्कासन से भारत की अर्थव्यवस्था का रूपान्तरण एक औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में हो गया। जिससे देश में गहरा आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। इस गहराते आर्थिक संकट और धन-निष्कासन ने अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरणा प्रदान की।
दादाभाई नौरोजी ने धन-निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ Evil of all Evil की संज्ञा दी है।
- 1905 ई. में उन्होंने कहा था, ‘धन का बहिर्गमन समस्त बुराइयों की जड़ है और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण।’
- इस ओर प्रथम प्रयास दादाभाई नौरोजी ने किया।
- उन्होंने 2 मई 1867 को लंदन में आयोजित ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन की बैठक में अपने पेपर जिसका शीर्षक था England’s Debt to India को पढ़ते हुए पहली बार ‘धन का बहिर्गमन’ सिद्धांत को प्रस्तुत किया।
- पावर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया 1867
- द वॉन्ट्स एण्ड मीन्स ऑफ इण्डिया 1870
- ऑन दी कामर्स ऑफ इण्डिया 1871 द्वारा धन के निष्कासन सिद्धांत की व्याख्या की।
- नौरोजी के अनुसार ‘भारत का धन बाहर जाता है और फिर वही धन भारत मे ऋण के रूप में आ जाता है और इस ऋण के लिए और अधिक ब्याज, एक प्रकार का यह ऋण कुचक्र सा बन जाता है।’
- दादाभाई ने भारतीयों को उनके देश में विश्वास तथा उत्तरदायित्व पूर्ण पदों से वंचित करने की ब्रिटिश नीति को ‘नैतिक निकास’ की संज्ञा दी है।
- उन्होंने प्रति व्यक्ति वार्षिक आय का अनुमान 20 रुपये लगाया था।
- प्रसिद्ध इतिहासकार पर्सिवल स्पीयर ‘अब बंगाल में खुला तथा बेशर्म लूट का काल आरम्भ हुआ।’
- के.एम. पणिक्कर ने 1765 ई. से 1772 के काल को 'डाकू राज्य' कहा है।
- 1813 से 1857 - मुक्त व्यापार एवं पूंजी का साम्राज्यवाद
- इस काल में भारत के कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन हुआ।
- कार्लमार्क्स - सूती कपड़ों के घर में सूती कपड़ों की भरमार कर दी गई है।’
- 1851-1947 ई. वित्तीय पूंजी का साम्राज्यवाद- अंग्रेजों द्वारा यहां के उद्योगों में भारी मात्रा में पूंजी निवेश किया गया।
- आर. सी. दत्त ‘भारतीय राजाओं द्वारा कर लेना तो सूर्य द्वारा भूमि से पानी लेने के समान था जोकि पुनः वर्षा के रूप में भूमि पर उर्वरता देने के लिए वापस आता था, पर अंग्रेजों द्वारा लिया गया कर फिर भारत में वर्षा न करके इंग्लैण्ड में ही वर्षा करता था।’
- रमेश चन्द्र दत्त - इकोनोमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया (1901) भारत के आर्थिक इतिहास पर पहली प्रसिद्ध पुस्तक माना जाता है।
- आर. सी. दत्त धन का निष्कासन के दुष्परिणामों को नादिरशाह जैसे विदेशी आक्रांताओं द्वारा की गई लूटमार।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अपने कलकत्ता अधिवेशन (1896) में सर्वप्रथम ‘धन का निष्कासन सिद्धांत को स्वीकार किया गया।
- 1901 में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के बजट पर भाषण देत हुए गोपाल कृष्ण गोखले ने ‘धन के बहिर्गमन’ सिद्धांत को प्रस्तुत किया।
Really the explanation of DRAIN OF WEALTH THEORY
ReplyDeleteis marvelous and fabulous.
I can not remember the facts related this theory by books and other notes.
It is a good study material.
I SALUTE THIS STUDY MATERIAL.