आप किसी भी विचारधारा से प्रभावित हो सकते हैं, किसी भी धर्म से प्रभावित हो सकते हैं, किसी भी जाति के हो सकते हो, किसी भी सम्प्रदाय के हो सकते हो, पर... हो तो मानव।
मैंने मानव के कई रूप देखें हैं स्वार्थ, ईर्ष्यालु, चालक, अवसरवादी ये नकारात्मक महत्त्वाकांक्षी होते हैं और जो सामाजिक न्याय में विश्वास, सब मानव धर्म-जाति को समान, सबका कल्याण आदि सकारात्मक महत्त्वाकांक्षा वाले लोग होते हैं।
शायद मुझे में भी ये अवगुण हो, परंतु मैंने इन्हें नियंत्रित करने की कोशिश की है और आज तक खुद को वर्तमान कसौटी पर परखता हूं।
लघु संसद का सच मेरी कल्पना हो सकती है और मुझसे पहले या बाद में भी किसी ओर की भी। फर्क यह कि वह इसे ओर प्रकार से परिभाषित कर सकता है।
दोस्तों, मेरा मकसद सकारात्मक महत्त्वाकांक्षा का जाग्रत करना मात्र है और यह बताना कि सरकारें चाहे विश्व के किसी भी देश की हो, या हमारे देश भारत की हो या राज्य सरकारें हो। उनकी खामियों को सकारात्मक महत्त्वाकांक्षा के दायरे में उन तक पहुंचाना हैं। उन्हें या उनकी राजनीतिक पार्टी से मेरा या मेरे विचारों की टकराहट नहीं है। लघु संसद का सच एक ऐसा मंच है जो किसी गांव, या शहर या कॉलेज या चाय की थड़ी और कहीं, जहां पर कुछ लोग या युवा जो बड़े राजनीतिक नहीं है, परंतु अपनी समझ देश की परिस्थितियों से भली-भांति परिचित है और किसी न किसी पार्टी के विचारों से जुड़े हैं। यहां तक वे उनका समर्थन भी करते हैं। उनके मध्य वर्तमान मुद्दों पर सरकार और विपक्ष की तरह होने वाले अंर्तद्वंद्वों को उजागर करना ही इस मंच का उद्देश्य है। इस मंच के माध्यम से हम सरकार तक सामान्य लोगों के विचारों और उनके बीच उठने वाले जन कल्याण की बातों को पहुंचाना चाहते हैं, ताकि देश में जो माहौल बन रहा है उसे सामान्य जनजीवन जीने वालों की चाहत के अनुरूप बनाया जा सके। और इन राजनीतिक दलों के स्वार्थों का असर सामान्य लोगों पर न पड़े।
कभी यह होता है कि सत्ता पर कुछ नकारात्मक महत्त्वकांक्षा वाले लोग काबिज हो जाते हैं और वह अपनी बातें जनता पर थोपने का काम करते हैं। वहीं लोगों के बीच में जो विरोध-प्रतिरोध होता है वह अपनी सरकार तक नहीं पहुंच पाता है।
लघु संसद का सच यहीं है कि जनता का वह बौद्धिक वर्ग जो एक सकारात्मक सोच रखता है। परंतु राजनीतिक और नकारात्मक महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों के बीच उनकी आवाज दबा दी जाती है। उसे ही लोगों तक पहुंचाना इस मंच का प्रयास रहेगा।
हमारे आपसे प्रश्न-
क्या भारत में दलगत राजनीति होनी चाहिए या फिर लोगों के हितों को प्रमुखता मिलनी चाहिए?
क्या लोगों धर्म और जाति के प्रति कट्टरता पाले हैं, यदि है तो फिर एक धर्म का व्यक्ति भीख क्यों मांगता है या एक जाति का अमीर अपनी जाति के गरीब को बेटी क्यों नहीं ब्याहता, एक परिवार का व्यक्ति अपने ही परिवार के लोगों की उपेक्षा क्यों करता है?
शायद उन्हें डर है उनकी बेटी को नारकीय जीवन न जीना पड़े, जो उन्होंने अपने जीवन में अनुभव किया है और अन्य लड़कियों के साथ हुए अन्याय को देखा है।
हां मैंने देखा है अपनी जाति के अमीर लोगों को अच्छे पढ़े लिखे होने के बाद भी अपनी ही जाति के अमीर अपनी लड़की का विवाह समान जाति के गरीब लड़के से नहीं करता हैं क्यों?
हम क्यों धर्म, जाति और विचार धारा के प्रभाव में आ जाते हैं, कभी सोचा आपने?
तब धर्म-जाति क्यों भुल जाते हैं लोग, जब मेहनताना और पद की बात आती है। फिर कोई नहीं बोलेगा भाई हम सब एक-दूसरे के पूरक हैं, जितना महत्त्व आपके काम का है, उतना ही मेरे काम का।
ये नेता कितने ग़रीब लोगों के सहयोग के लिए आगे आए हैं।