Gavari Lok Natya
भील समुदाय का धार्मिक लोक नाट्य
कब किया जाता है: रक्षाबंधन पर्व के दूसरे दिन (ठंडी राखी)
भादो महीने की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है, जो अश्विन माह की नवमी तक पूरी आस्था, भक्ति भाव, उत्साह एवं धूमधाम से मंचित किया जाता है यानी 40 दिन तक।
क्षेत्र: मेवाड़ (उदयपुर संभाग)
भील समुदाय देवी पार्वती की प्रतीक गौरजा देवी की आराधना करते हैं।
- यह राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है जिसे लोक नाट्यों का मेरुनाट्य कहा जाता है।
- गवरी लोक नृत्य नाटिका खेलने वालों को खेल्ये कहा जाता है।
- इसके मंचन के दौरान पूरे सवा महीने तक खेल्ये एक समय भोजन करते हैं। वह नहाते नहीं है तथा हरी सब्जी, मांस-मदिरा, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
- नृत्य के अंत में गवरी को न्यौतने वाली बहन-बेटी उन्हें भोजन कराती है और कपड़े भेंट करती है जिसे पहरावणी कहते हैं।
- गवरी का आयोजन शहर एवं गांव के अलग-अलग स्थानों पर प्रात: 9 बजे से सायं 6 बजे तक चलता है।
- इसमें 15-16 वर्ष के युवकों से लेकर 50-60 वर्ष तक के पुरुष भाग लेते हैं।
- नृत्य नाटिका में 50-60 लोग पूर्ण हर्षोल्लास के साथ भाग लेते हैं।
- गांव में हर तीसरे वर्ष गवरी ली जाती है।
- गवरी खेल में दो मुख्य पात्र राईबुड़िया और राईमाता सबसे अहम होते हैं।
- राईबुड़िया (पुरिया) को शिव तथा राईमाता को पार्वती माना जाता है। इसलिए दर्शक इन पात्रों की पूजा भी करते हैं।
- गवरी का मूल कथानक और भस्मासुर से सम्बन्धित है।
- राईबुडिया की वेशभूषा विशिष्ट होती है।
- इस नृत्य में मुख्यतः चार प्रकार के पात्रों की अवधारणा होती है। देव कालका तथा शिव एवं पार्वती के साथ ही अन्य पात्र इस प्रकार हैः
- मानव पात्रः- बुढ़िया, राई, कूट-कड़िया, कंजर-कंजरी, मीणा, नट, बणिया, जोगी, बनजारा-बनजारिन तथा देवर-भोजाई इत्यादि।
- दानव पात्रः- भंवरा, खडलियाभूत, हठिया, मियावाड़।
- पशु पात्रः- सुर (सुअर), रीछड़ी (मादा रीछ), नार (शेर) इत्यादि।
- झामट्या लोक भाषा में कविता बोलता है तथा खटकड़िया उसे दोहराता है।
- गवरी के मुख्य खेलों में कान्ह-गुजरी, कालू कीर, बणजारा, मीणा, नाहर—सिंही, नाहर, कालका देवी, कालबेलिया, रोई-माछला, सूर-सूरडी, भंवरा-दानव, बड़ल्या-हिंदवा, कंजर-कंजरी, नौरतां, हरिया-अंबाव, खेतूड़ी और बादशाह की सवारी जैसे कई खेल आकर्षण का केन्द्र होते हैं।
- रक्षाबंधन के दूसरे दिन से ठीक चालीसवें दिन गडावण-वलावण पर्व के साथ गवरी का समापन किया जाता है। इस दिन गौरजा देवी की गजारूढ़ प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। खेल्ये मिट्टी से गौरजा देवी की हाथी पर आरूढ़ प्रतिमा बनाते हैं।
- जिस दिन गौरजा देवी की प्रतिमा बनाई जाती है, उसी दिन गडावण पर्व मनाया जाता है।
- जिस दिन इसे विसर्जित किया जाता है उस दिन को वलावण पर्व कहा जाता है।
पुरिया नामक पात्र हिस्सा है—
1. जस्मा ओडेन नृत्य नाटिका का
2. रम्मत लोकनाट्य का
3. भवाई नृत्य का
4. गवरी नृत्य नाटिका का
RSMSSB फोरेस्ट गार्ड 13 नवंबर, 2022 द्वितीय पारी
उत्तर- 4
- गवरी नृत्य नाटक के प्रमुख पात्र भगवान शिव होते हैं। शिव की अर्धांगनी पार्वती (गौरी) के नाम से ही इसका नाम 'गवरी'पड़ा। गवरी नृत्य में शिव को पुरिया कहा जाता है।
- यह पुरुष प्रधान लोक नाट्य है।
गवरी लोक नृत्य मूलत: संबंधित है:
1. गरासियों से
2. कालबेलियों से
3. कंजरों से
4. भीलों से
उत्तर- 4
RPSC कॉलेज लेक्चरर 2018
राजस्थान का कौन-सा लोक नाट्य 'मेरू नाट्य' के नाम से जाना जाता है?
1. भवाई
2. ख्याल
3. गवरी
4. तमाशा
उत्तर- 3
आई.ए. 2018
गवरी एक लोकनाट्य है, जो आधारित है—
1. हीर-रांझा की कथा पर
2. शिव-भस्मासुर की कथा पर
3. कृष्ण-कंस की कथा पर
4. प्रताप-अकबर की कथा पर
उत्तर- 2
VDO 28.12.21