परिवारवाद के कारण कई योग्य प्रतिभाएं आगे आने से वंचित हो रही है
बहुत से पार्टी के वफादार केवल ख्वाब देखते हैं कि अब की बार उनकी बारी आएगी परंतु सत्ता के लोभी बड़े पदाधिकारी अपने पुत्र—पुत्रियों, पुत्रवधू और समधियों को चुनाव के मैदान में उतार देते हैं जिससे उनके जनप्रतिनिधि बनने का ख्वाब कभी पूरा नहीं होता है।
वैसे भी एक पार्टियों के कद्दावर नेता खुद 40—50 साल या उम्र के अंतिम पड़ाव तक सत्ता मोह नहीं त्यागते हैं जिससे पार्टी के योग्य सदस्य केवल सदस्य बनकर रह जाते हैं।
अच्छा है लोकतंत्र इन परिवारों को संरक्षित कर रहा है, जबकि वे काबिल नहीं होते हैं।
अगर पोस्ट पसंद आऐ तो अपनी राय जरूर दें।