तेरी सॉरी पढ़ने की अब उनमें हिम्मत कहां,
क्योंकि, तुमने उन्हें माफ करने के काबिल समझा ही कहां।
एक बार कहता तो सही,
पिताजी, ये डगर कठिन है,
क्या, पता नई मंजिल वो दिखाते।
आज, तुम उनके जीवन में हार से भी बड़ा अंधेरा कर गए हो।
हां, फेल मैं भी हुआ PMT में, BA में भी।
पर ऐसी डगर नहीं चुनी,
आज कामयाब हूं राह बदलकर।
अरे, एक नाकामी से ही डर गए
सोचो, कितनी कुर्बानियों के बाद हमें आजादी मिली है
तुम लड़ते
तो शायद और किसी क्षेत्र में टॉपर होते
हां, मैं भी फेल हुआ।
पिता लड़े, बहुत डाटा,
मां को भी बहुत दु:ख हुआ मेरी असफलता पर।
पर, मैं कायर नहीं था
फिर से नई राह चुनी
एक नया सपना संजोकर
आज कामयाब हूं।
पता है मैं अपने मां-बाप का सहारा हूं।
मरने से क्या समाधान होता है
तुम थे तब भी मां-बाप की जरूरत थे,
नाकामयाब हुए हो तुम,
राह बंद नहीं की किसीने
तुम साथ होते तो,
ऐसी हजारों हारों का सह लेते
पर, अब क्या? सॉरी से
जब तुम हो ही नहीं।
आज वो अकेले हैं
क्योंकि तुम नहीं हो।
कौन पूछेगा उनसे लड़कर-डांटकर
तात! आपने खाना खाया की नहीं
मां! तुमने अभी तक खाना खाया नहीं
तुम्हारी जरूरत उन मां-बाप को तुम्हारे जाने के बाद भी है
सोचो, तुम्हारे जाने के बाद
उनका सहारा कौन होगा।
एक लक्ष्य से चूके हो,
क्या, पता दूसरा लक्ष्य तुम्हारा इंतजार कर रहा हो।
एक बार राह बदल कर,
जीने की ठानी होती
तुम जरूर मां-बाप की खुशी होते
हारो। पर फिर से लड़ो
क्योंकि, मरना समाधान नहीं।
लेखकः राकेश सिंह राजपूत